भास्कर इनडेप्थ:जिस हफ्ते कनाडा में पारा 49.6 डिग्री पहुंचा, न्यूजीलैंड -4 डिग्री पर ठिठुरा, बीते 40 सालों में 400% बढ़ गया है धरती का तापमान
इन दिनों अगर हम जयपुर, भोपाल, पटना, लखनऊ और दिल्ली में रहकर बहुत गर्मी लगने की शिकायत कर रहे हैं तो एक बार हमें ये जरूर देखना चाहिए कि दुनियाभर के मौसम में कैसी तबाही मची हुई है। जिस दिन कनाडा में पहली बार पारा 49.6 डिग्री पहुंचा, गर्मी से लोग चलते-चलते सड़कों पर गिरने लगे, उसी दिन न्यूजीलैंड में इतनी बर्फ पड़ी कि सड़कें जाम हो गईं। अमेरिका, यूरोप, न्यूजीलैंड, अंटार्कटिका, खाड़ी के देशों से लेकर भारत-पाकिस्तान तक के मौसम में भयानक बदलाव हो रहे हैं। इसे एक्सट्रीम वेदर कंडीशन कहा जा रहा है, जो दुनिया की तबाही की ओर इशारा करती है।
हम यहां दुनिया के अलग-अलग हिस्से में जून के आखिर में हुए मौसम के बदलावों और उनके कारणों को बता रहे हैं-
इतिहास में पहली बार 45 डिग्री से ऊपर गया कनाडा का पारा
इस वक्त कनाडा में हीट डोम यानी ऐसी लू चल रही है, जैसी 10 हजार साल में शायद एक बार किसी देश में चलती है। इसके कारण जिस कनाडा में औसत तापमान 16.4 डिग्री सेल्सियस रहता था, वहां का पारा 49.6 डिग्री तक पहुंच गया है। इससे पहले जुलाई 1937 में कनाडा के कई हिस्सों का तापमान 45 डिग्री तक पहुंचा था। अब 84 साल बाद एक बार फिर गर्मी का कहर टूटा है और स्कूल-कॉलेज, यूनिवर्सिटी, ऑफिस, टीका सेंटर बंद कर दिए हैं। गर्मी से 400 से ज्यादा लोगों के मरने की खबर है।
वैंकूवर, पोर्टलैंड, इडाहो, ओरेगन में सड़कों पर पानी का फव्वारा छोड़ने वाली मशीन लगा दी गई है। जगह-जगह कूलिंग स्टेशन खुल रहे हैं। वैंकुवर के करीब 5 हजार लोगों की क्षमता वाले कूलिंग सेंटर और एसी वाले सिनेमा हॉल अगले 10 दिन तक हाउसफुल हैं।
100 साल बाद अमेरिका के ‘कश्मीर’ सिएटल का पारा 44 डिग्री तक चढ़ा
वॉशिंगटन के कश्मीर कहे जाने वाले सिएटल का पारा जून के आखिरी सप्ताह में 44 डिग्री तक पहुंच गया। यहां बीते 100 सालों में ऐसा नहीं हुआ था। अमेरिका के प्रशांत उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में बिजली नहीं दी जा रही है। दोनों जगहों पर लू और गर्मी इतनी ज्यादा है कि पॉवर सप्लाई करने पर आग लगने के आसार बढ़ जाते हैं। यहां रहने वाले सवा दो लाख लोग बिजली कटौती का सामना कर रहे हैं। बिना बिजली के वो खुद को ठंडा रखने के लिए एसी या दूसरी चीजें भी नहीं चला पा रहे हैं।
5 सवाल-जवाब से समझिए कनाडा-US में क्यों बने हैं प्रेशर कूकर में उबलने जैसे हालात
1. कनाडा और अमेरिका में अचानक इतनी भयानक लू क्यों चल रही है?
इसके पीछे उच्च दबाव वाले 2 सिस्टम हैं। मौसम में सिस्टम का मतलब आप समझते हैं? जैसे हम आम कामों के लिए एक सिस्टम बनाते हैं। वैसे ही अगर मौसम में किसी खास किस्म की बात नजर आने लगे तो उसे सिस्टम कहते हैं। फिलहाल उच्च दबाव वाले जो 2 सिस्टम बने हैं, उनमें 2 जगहों से बहुत गर्म हवाएं आ रही हैं। ये जहां से गुजर रही हैं, वहां आग बरसने जैसा माहौल बन रहा है।
पहली गर्म हवा अलास्का के अलेउतियन द्वीप समूह से आ रही है और दूसरी कनाडा के जेम्स बे और हडसन बे से। ये गर्म हवाएं इतनी तगड़ी हैं कि इनके सिस्टम के अंदर ठंडी समुद्री हवा घुस ही नहीं पा रही हैं। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि जिस तरह प्रेशर कूकर के अंदर बेहद गर्म हवाएं रहती हैं, उसके आसपास ठंडी होती है, लेकिन वो प्रेशर कूकर के अंदर नहीं जा पाती। अमेरिका का उत्तर प्रशांत क्षेत्र और कनाडा का ब्रिटिश कोलंबिया वाला हिस्सा फिलहाल प्रेशर कूकर के अंदर चीजें जैसे उबलती हैं, वैसे महसूस कर रहा है।
2. क्या पहले भी ऐसा होता रहा है?
पहले 10 से 30 साल में एक बार उच्च दबाव वाला सिस्टम बनता था, लेकिन इतना तगड़ा नहीं। इसीलिए इसे आम हीट वेब के बजाय हीट डोम कहा जा रहा है, जो 10 हजार साल में एक बार बनता है।
3. ये कितना खतरनाक है?
आज तक इतनी गर्मी कनाडा में नहीं पड़ी थी। 65 साल से अधिक वाले 22 करोड़ लोग फिलहाल भयानक खतरे का सामना कर रहे हैं। अभी इससे निपटने का कोई तरीका भी नहीं है। आग लगने और सूखा पड़ने का भी खतरा मंडरा रहा है।
4. इसके थमने के आसार कब तक हैं?
15 जुलाई तक तो कोई बदलाव नहीं होगा। इससे पूरी दुनिया के तापमान पर बुरा असर पड़ सकता है। अभी इसके जाने को लेकर कोई भविष्यवाणी करना कठिन है। समुद्र से सटे पश्चिमी किनारे लगातार कई दिनों तक गर्म रह सकते हैं।
5. क्या ये मामला सीधा ग्लोबल वॉर्मिंग से जुड़ा है? दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में प्रकृति को इंसान जो नुकसान पहुंचा रहे हैं, वही इन सबके लिए जिम्मेदार हैं?
बिल्कुल। साल 1900 की तुलना में फिलहाल धरती का पारा 2 डिग्री के आसपास बढ़ गया है। पूरी दुनिया लगातार गर्म होती जा रही है। हम एक्सट्रीम वेदर कंडीशन की ओर बढ़ रहे हैं।
हालांकि कनाडा और अमेरिका की मौजूदा घटनाओं की एक बड़ी वजह पश्चिमी अमेरिका का सूखा भी है। सूखे के वक्त सूरज की रोशनी सीधे धरती को गर्म करती है। इस क्षेत्र में जब सामान्य हवा भी चलती है तो वो लू बन जाती है। समुद्र किनारे लगातार हवा चलती है, तब लू का एक सिस्टम बन जाता है। आसमान में पहुंचकर ये अजीब किस्म का दबाव बनाती है, जो बेहद खतरनाक होता है।
पूर्वी यूरोप रिकॉर्ड तोड़ लू से परेशान, मास्को में 120 सालों बाद तापमान 35 डिग्री
इस साल पूर्वी यूरोप के देश हंगरी, सर्बिया और यूक्रेन तप रहे हैं। द गॉर्जियन में छपी एक स्टडी कहती है कि ये क्लाइमेट चेंज का असर है। हर साल इन देशों में गर्मी बढ़ती जा रही है। यहां के मौसम विभाग ने अलर्ट जारी कर यह भी कहा है कि आने वाले दिनों में भयानक बारिश के संकेत दिख रहे हैं।
बीते 40 सालों में पृथ्वी इतनी तेजी से गर्म हुई, जितनी 100 साल में नहीं होती
धरती के तापमान में हर 40 से 60 साल के बीच कुछ बदलाव दिखते हैं। 1880 में धरती का तापमान माइनस 0.2 डिग्री था। 60 साल बाद 1940 में पहली बार यह 0 डिग्री पर पहुंचा था। इसके ठीक 40 साल बाद 1980 में पहली बार पारा 0.2 डिग्री से ऊपर गया। यानी 100 साल में पारा माइनस 0.2 से 100% बढ़कर प्लस 0.2 हो गया। लेकिन 1980 के बाद के 40 साल यानी 2020 तक धरती 1 डिग्री गर्म हो गई। यानी बीते 40 साल में ठीक उसके पहले के 40 साल की तुलना में 400% तापमान बढ़ा है।
जर्मनी में भारी आंधी-तूफान और बाढ़ का खतरा मंडरा है। मौसम वैज्ञानिक रिचर्ड बैन कहते हैं जर्मनी का मौसम बीते 10 सालों में एक्सट्रीम वेदर कंडीशन की ओर बढ़ रहा है। यहां अचानक से भारी बारिश और लगातार काफी दिनों तक बारिश न होने के आसार हैं। इसके पीछे की वजह जलवायु परिवर्तन है। रूस की राजधानी मास्को 1901 के 120 साल बाद 34.8 डिग्री तक गर्म हो गई। साइबेरिया का तापमान 30 डिग्री पर पहुंच गया है।
न्यूजीलैंड में इतनी ठंड पड़ रही है कि राजधानी में आपातकाल लगा दिया गया है
जून के आखिरी हफ्ते और जुलाई के शुरुआती 2 दिनों में न्यूजीलैंड में 8 इंच से ज्यादा बर्फ पड़ी। 55 साल बाद न्यूजीलैंड का तापमान जून-जुलाई में -4 डिग्री तक पहुंचा। इस वक्त यहां का औसत तापमान 11-15 डिग्री होता है। 3 जुलाई की हालत ये है कि राजधानी वेलिंगटन में आपातकाल की घोषणा हो चुकी है। समुद्री किनारों पर 12 मीटर ऊंची लहरें उठ रही हैं। इनके चलते अगले कुछ दिनों में और ज्यादा बारिश हो सकती है। पारा भी और गिर सकता है। इसकी वजह आर्कटिक ब्लास्ट है।