“सिविल मुकदमों में कौन-कौन पक्षकार बन सकता या बनाया जा सकता है?
क्या सिविल मुकदमा किसी के भी द्वारा और किसी के भी खिलाफ दाखिल किया जा सकता है? किसी भी व्यक्ति को सिविल मुकदमे में पक्षकार बनाने के पीछे क्या विचार होता है? क्या कानूनी रूप से किसी भी तरह की कोई रोक-टोक मौजूद है जो किसी व्यक्ति को गैर-जरुरी मुकदमेबाज़ी से बचाती हो? किसी भी सिविल मुक़दमे में दो पक्षकार होते है। प्रथम, वादी जिसने अदालत में मुकदमा दाखिल किया हो या जिसके अधिकारों का हनन हुआ हो अथवा जो किसी व्यक्ति विशेष से अपने अधिकारों की मांग करता हो। द्वितीय, प्रतिवादी जिसके खिलाफ वादी द्वारा मुकदमा दाखिल किया गया हो या जिसने किसी के अधिकारों का हनन किया हो अथवा जो कानूनी रूप से किसी के अधिकारों की पूर्ति करने हेतु जिम्मेदार हो।